शायर- फ़राग़ रोहवी
देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा
ख़ुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा
उस का जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा
अपना सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा
मुझ को था ये गुमां के मुझी में है इक अना
देखी तेरी अना तो मुझे सोचना पड़ा
दुनिया समझ रही थी के नाराज़ मुझसे है
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा
सर को छुपाऊं अपने कि पैरों को ढांप लूं
छोटी सी थी रिदा तो मुझे सोचना पड़ा
इक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा ‘फ़राग़’
जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा
शब्दार्थ :
अना- आत्मसम्मान
रिदा- घूंघट
देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा
ख़ुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा
उस का जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा
अपना सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा
मुझ को था ये गुमां के मुझी में है इक अना
देखी तेरी अना तो मुझे सोचना पड़ा
दुनिया समझ रही थी के नाराज़ मुझसे है
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा
सर को छुपाऊं अपने कि पैरों को ढांप लूं
छोटी सी थी रिदा तो मुझे सोचना पड़ा
इक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा ‘फ़राग़’
जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा
शब्दार्थ :
अना- आत्मसम्मान
रिदा- घूंघट