प्रिय शास्त्री जी,
कैसे हैं? पता नहीं। पर इतना विश्वास है कि जैसे भी होंगे, जहाँ भी होंगे, स्वाभिमान से होंगे। अपना और इस मुल्क का सर उठाये हुए होंगे। आपको लिखते हुए मैं भावुक हो रहा हूँ। लग ही नहीं रहा कि मैं ऐसे आदमी को लिखने बैठा हूँ जो एक समय भारत का प्रधानमंत्री था। जैसे मैं घर में बाबा को ख़त लिख रहा हूँ जो सुबह से कहीं निकले हैं और भेजने के लिए मेरे पास पता भी खेत का ही है!
आज आपका जन्मदिन है। आपको क्या दे सकता हूँ? देने के लिए मेरे पास यही कुछ शब्द मात्र हैं। मुझे मालूम है कि इस शब्द मात्र में भी प्रशंसा के अंश को आप स्वीकार नहीं करेंगे। फिर आपके लिए पंडित नेहरू की पंक्तियाँ याद आती हैं - "अत्यंत ईमानदार, दृढ़ संकल्प, शुद्ध आचरण और महान परिश्रमी, ऊंचे आदर्शों में पूरी आस्था रखने वाले निरन्तर सजग व्यक्ति का ही नाम है, "लालबहादुर शास्त्री।"
आपके जीवन को विभिन्न चरणों में बाँटकर देखा जा सकता है। सभी चरणों में आपका संघर्ष निर्विवाद रूप से समान रहा। पिताजी का देहांत तभी हो गया जब आप डेढ़ साल के थे। माता जी ने ही आपकी पूरी परवरिश की थी।चूँकि उस समय शादी कम उम्र में कर दी जाती थी आपका विवाह भी 22 साल की उम्र में हो गया। पत्नी ललिता जी जब घर आई तो आशीर्वाद दिया कि इस घर में तुम्हारा सम्मान बढ़े। और फिर आपने जो कहा वो शायद आप ही कह सकते थे, "ललिताजी आज से हम दोनों के जीवन की सफलतायें-असफलतायें एक की होकर भी दूसरे को प्रभावित किये बिना नहीं रहेगी। देश सेवा का जो व्रत मैंने लिया है उसमें आपका भी साथ होगा तो मैं समझूँगा कि जिंदगी की आधी लड़ाई आज ही जीत ली। आपको शायद दुःख पहुँचेगा कि हम जीवन भर गरीब रहना चाहते हैं। गरीबी हमें किसी दृष्टि से बुरी नहीं लगती है।
किस किस रूप में याद करूँ आपको, समस्याओं से घिरे शास्त्री जिन्हें नेहरू के निधन के बाद देश की कमान सँभालनी थी लेकिन चीन अमेरिका पाकिस्तान के साथ यहां अपने लोग तक घात लगाये बैठे थे। या उस शास्त्री को जो राज्यसभा में अपने ऊपर की गई आलोचना टिप्पणी के जवाब में कहते हैं - "मैं वाणी में नरम हूँ, इसलिए आप यह न समझें कि राष्ट्र कार्य चलाने में और राष्ट्रनीति का अमल करने में ढीला हूँ।" या उस शास्त्री को जो अपनी मां को अपने रेल मंत्री होने का पता इसलिए नहीं लगने देते कि कहीं वे सिफारिशें न कराने लगें। या उस शास्त्री पर जो ख़ुद पर हँस सकने का साहस रखते हैं।
मुझे यह बात हजम ही नहीं होती कि एक प्रधानमंत्री अपनी पत्नी के लिए साड़ी खरीदने जाता है और कहता है कि मुझे सस्ती साड़ी दिखाइए। भले ही मैं प्रधानमंत्री हूँ पर हूँ तो ग़रीब ही न! यहाँ प्रधान भी लाखों में बात करते हैं। पर वो आप थे सिर्फ़ आप! जब जब किसानों की बात आएगी तो याद आएगा एक चेहरा जो प्रधानमंत्री आवास के लॉन में खेती करता था। युद्ध में जवानों के साथ खड़े हुए लाल बहादुर शास्त्री का नारा गूंजता रहेगा "जय जवान, जय किसान"
हिन्दी के कवि लेखक रामकुमार वर्मा ने आप पर एक कविता लिखी थी जिसे भेज रहा हूं -
भारत-भू का भाग्य भव्य होगा भविष्य में
राष्ट्र-यज्ञ हित हृदय हमारा हो भविष्य में
नेहरू का नेतृत्व, नये नायक निर्णय में
जीवित है जग के जन-जन की ज्योतित जय में
जन मानस में हुआ तरंगित जननी का उर
लाल बहुत हैं किंतु एक है लाल बहादुर
आपका बच्चा
आयुष्मान