ऐ बापू, सुनो! हमने माना कि एक ज़माना था जब आपकी एक आवाज़ पर पूरा देश खड़ा हो जाता था, कि विश्व में कोई ऐसा देश नहीं जहां महात्मा गांधी नाम अनजाना हो, कि तुम दक्षिण अफ्रीका के नहीं हो फिर भी वहाँ तुम्हारा यहाँ से ज़्यादा सम्मान है, कि तुम्हारी आत्मकथा दुनिया की श्रेष्ठतम 20 किताबों में शुमार की जाती है, कि नीदरलैंड जैसे देश में तुम्हारे नाम के 30 मार्ग हैं, कि कितने ही देशों में तुम्हारी प्रतिमा स्थापित है और ये भी कि बिना बात के दुनिया किसी को इस स्तर का सम्मान नहीं देती लेकिन....
बापू एक चीज़ तुम न जान पाए, कि जिस देश में तुमने जन्म लिया और जिसके लिए पूरा जीवन भागते-दौड़ते रहे, वो कृतघ्न लोगों का देश है। इसके लिए किसी भी उच्च भावना का कोई मूल्य नहीं है। ये खाने और हगने तक सीमित जनता का निजाम है और इसे नेता भी अब तो ऐसा ही चाहिए। तुम जीवन के उच्चतम मूल्यों की वक़ालत करते रहे और हम निम्नतम स्तर तक जाने के लिए बेताब हैं। हालांकि बातें हम ऊँची ही करते हैं लेकिन दबी ज़बान कह देते हैं कि इन पर अमल करना संभव नहीं और फिर हम वही लीचड़पन जीने लगते हैं। देश ने बड़ी उपलब्धि पा ली है, तुम्हारे सत्य के साथ प्रयोगों पर असत्य के प्रयोग करने वाले व्यक्ति ने विजय पा ली है। वो सहजता से हर जगह तुम्हारे सामने झुक जाता है पर मन ही मन गालियाँ भी देता है।
वो तो प्रतिनिधि है, हमने पूरी एक पीढ़ी ऐसी तैयार कर ली है जो बड़ी ही सहजता से ढोंग कर लेती है। पूरी पीढ़ी तुम्हें गालियाँ देने के लिए तैयार कर दी है जो दिन रात बस यही काम करती है। हालांकि उसे इतिहास और समाज की वस्तुस्थिति से बिल्कुल दूर रखा गया है।
उन्हें नफ़रत पर ही पाला गया है तो तुम्हारे प्रेम वाले दृष्टिकोण को वो देख भी कैसे सकते हैं? तो बापू, कुछ गिने-चुने लोग हैं जो अब भी आपको श्रद्धांजली देते हैं और दिल से देते हैं। कुछ और समय, फिर आप सिर्फ विदेशों में ही पाए जाओगे, जैसा कि हमने बुद्ध के साथ किया। अगर पुनर्जन्म होता है तो अब इधर मत आना, हम तो ऐसे ही हैं।