मैं पूरे देशवासियों की तरफ से आप सभी खिलाड़ियों से माफी मांगना चाहता हूं, क्योकि हम आप सभी को हार और जीत के चश्मे से ही देख रहे है, जबकि आप सब ने हमे बड़ा संकेत दिया है।
हैलो एथलीट्स,
मैं आपका वो दर्शक हूं जिसका जन्म ओलंपिक के मौसम में होता है और ओलंपिक खत्म होने के बाद विलुप्त प्राय कैटेगरी में आ जाता है। आपके प्रदर्शनों पर मैं लगातार नजर बनाए हुआ था और साथ ही साथ अपने फेसबुक और व्हाट्सएप के स्टेटसों और डीपियों से लोगों को एहसास भी कराता रहा कि मैं ओलंपिक को समझता हूं। जैसे क्वाटर फाइनल में हॉकी की टीम पहुंच के हार गई, तो मैने दुखी वाली इमोजी का स्टेटस और हॉकी को डीपी पर लगाया था।
अभिनव बिंद्रा के चूकने से लेकर योगेश्वर दत्त के हारने तक मैं ओलंपिक को फॉलो करता रहा, 58 किलोग्राम वर्ग की साक्षी मलिक की जीत और पीवी सिंधु का स्पेन के साथ शानदार मैच भी देखा, लेकिन आज आप सभी खिलाड़ियों से देशभर के दर्शकों की तरफ से माफी मांगता हूं।
आप भी सोच रहे होंगे कि मैं माफी क्यों मांग रहा हूं, मैं इसलिए माफी मांग रहा हूं क्योकि हम भूल गए थे कि इस देश में क्रिकेट के अलावा भी दूसरे खेल खेले जाते हैं। यकीन मानिए कि इस देश की जितनी भी आबादी आज ओलंपिक के लिए आपका नाम जप रही है उसे आज से पहले साक्षी मलिक और दीपा कारमकर का नाम भी नहीं मालूम था। इस अनदेखी के लिए हम माफी मांगते हैं।
हम माफी मांगते है क्योकि आज हम आपको जीत और हार के नजरिए से देख रहे हैं। जबकि आप सभी तो विजेता हैं। जिन्होने सीमित या फिर यूं कहें कि बिना संसाधनों के, सिर्फ अपनी मेहनत से ये मुकाम हासिल किया है। हम आप पर बिना किसी मर्जी के 125 करोड़ लोगों की उम्मीद लाद देते हैं जिसको आप मुस्कुराते हुए स्वीकार कर लेते हैं। आप सब देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए अपने जीवन का सबसे कीमती पल कुर्बान कर देते हैं। और हम व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर पर आपकी हार का ट्रोल कर रहे होते हैं।
सच्चाई ये है कि जो आपने हमे दिया है उसकी कीमत हमे समझनी होगी। हमे आपको वो आत्मविश्वास देना होगा जिसकी आपको जरूरत है। इस देश के खिलाड़ियों को वो सम्मान देना होगा जिसके वो हकदार हैं। सिर्फ ताली बजाने और नाम लयबद्ध तरीके से पुकारने से काम नहीं चलेगा। हमे सिस्टम के साथ साथ सामाजिक तौर पर भी खेल में अपनी सहभागिता बढ़ानी होगी।
क्रिकेट के अलावा भी खेलों में अपनी दिलचस्पी को समझना होगा। हम आदती हो चुके हैं कि हम हर गलती के लिए सरकार पर दोष मढ़ देने के लिए, जबकि वास्तिवकता ये है कि सरकारें मैदान पर खेल रहे खिलाड़ियों को प्रोत्साहित कर सकती है, लेकिन घरों से निकाल कर मैदान तक नहीं ला सकती हैं। इंजीनियर, डॉक्टर, वकील या फिर ऐसे ही कुछ चुनिंदा प्रोफेशन और व्यवसाय ही हमारे समाज में सफलता के पैमाने मान लिए गए है।
अगर परिवारों में खेल की महत्ता को स्वीकार कर लिया गया होता तो ओलंपिक में भारत का स्थान अंकतालिका में थोड़ा ऊपर जरूर होता। इसलिए मैं उन सभी खिलाड़ियों को धन्यवाद और बधाई देता हूं कि आपने हमे खेल की अहमियत समझने का मौका दिया और गलती का एहसास कराया। मैं वादा तो नहीं कर सकता लेकिन इस बात का विश्वास जरूर दिला सकता हूं कि अब मैं खेल को वो सम्मान जरूर दूंगा जिसका वो हकदार है। मैं लोगों को ये समझाने का प्रयास करूंगा कि खेल सिर्फ मनोरंजन का विषय नहीं है बल्कि देश के सम्मान का भी विषय है।
आने वाले भविष्य की शुभकामनाओं के साथ
आपका एक मौसमी दर्शक